कविता की पूर्णता

अधूरी है मेरी कविता ऐ मेरे मालिक … अधूरी है

इसे तलाश है पूर्णता की, जो चाहिए हर किसी को

 

शब्दोंके तीखे बाण चलाओ या बरसालो चाहे फूल जितने

उसकी मिटटी के पैरोंपर चढ़ालो फल भी चाहे जितने

या फिर बनवाके एक मंदिर रखदो शोभा की वस्तु सम

या फिर जाकर उसे बहादो चौराहे की उस नालीपर

अधूरी है मेरी कविता फिरभी ऐ मालिक … अधूरी है ..

 

न बल से न छल से न डर से न पहर से

न सूर्य की तपस से न गंध की छिड़क से

न आग की लपट से न आप के करम से

न तख़्त के कलम से न पीठ तिलक से

नहीं .. मिलेगी नहीं इनमेसे किसीसेभी इसे पूर्णता

 

इसे पूर्णता मिलेगी तब जब आयेंगे ऐसे मतवाले

जो  हाथों में कलम उठाये मेरी कविता अपने लब्जों में लिखेंगे

जो हातों में डफली उठाकर मेरी कविता अपने सुरमे गायेंगे

जो दोहराएँगे मेरी रचनओंको करने हाल-ए-दिल बयाँ

तब मिलेगी उसे पूर्णता ऐ मेरे मालिक .. तब …

 

Dedicated to Emerson

About shree

नमस्कार.. मी श्रीनिवास... माझे छंद अनेक आहेत. लिहिणे...वाचणे,,,आकाश दर्शन.. (मी ह्याला पूर्वी तारका दर्शन म्हणायचो पण श्लेष अलंकाराचा धसका घेऊन मी तो शब्द सोडला.)...असो.. खाणे, गाणे आणि फिरणे ह्या तीन णे-कारांत शब्दांवर माझी भक्ती आहे (कदाचित ती माझ्या नाकर्तेपणामुळे सुद्धा असेल.).. तर माझा ब्लॉग पहा.. वाटले तर जरूर वाचा. आणि प्रतिक्रिया द्या..धन्यवाद..
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